महाशिवरात्रि क्यों मनाई जाती है | महाशिवरात्रि की कथा सुनाओ

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महाशिवरात्रि क्यों मनाई जाती है:-  महाशिवरात्रि का व्रत फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाता है महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव की पूजा आराधना की जाती है और भगवान शिव को अलग-अलग नामों से पुकारा जाता है जैसे कि हर हर महादेव, भोलेनाथ,शिव यानी,नीलकंठ, शिव शंभू, शिव जी रूद्र रूद्र और भोले भंडारी आदि के नामों से भगवान शिव को पुकारा जाता है और उनकी पूजा आराधना बड़े ही चाव से की जाती है और भगवान शिव जी मन के बड़े ही बोले होने के कारण उनको भोलेनाथ के नाम से पुकारा जाता था और भगवान शिव जी ने अपनी जटाऔ के अंदर गंगा को धारण किया हुआ था क्योंकि यदि गंगा सिधी धरती पर आती तो पृथ्वी नष्ट हो जाती थी इसलिए सभी देवी देवताओं ने भगवान भगवान शिव जी से आराधना की थी कि आप गंगा को अपनी जटाओं के अंदर धारण करें जिससे कि पृथ्वी पर आ सके इसलिए भगवान शिव को अन्य नामों के साथ साथ जटाधारी शिव जी का जाता हैं जिसकी वजह से गंगा को शिव पुत्री भी कहा जाता है इसलिए हिंदू धर्म के प्रमुख देवी देवता के रूप में भगवान शिव की पूजा आराधना की जाती है और और भगवान शिव को हर हर महादेव की उपाधि भी प्राप्त की गई है और आज भी हिंदू धर्म में हर हर महादेव यानि शिव जी की पूजा की जाती है.

महाशिवरात्रि पूजन सामग्री:- महाशिवरात्रि के दिन हिंदू धर्म के लोग भगवान शिव जी का व्रत रखते हैं और भगवान शिव जी की पूजा करके ही कुछ खाते या फिर पीते हैं और वह भी दिन में एक बार भोजन ग्रहण करते हैं भगवान शिव जी की पूजा सामग्री के अंदर पत्र पुष्प सुंदर वस्त्रों से मंडप को तैयार किया जाता है और वेदी पर क्लेश की स्थापना करके गौरी शंकर की स्वर्ण मूर्ति तथा नंदी की चांदी की मूर्ति रखी जाती है और कलश में जल भरकर, रोली ,मौली ,चावल, पान ,सुपारी ,लॉन्ग, इलायची, चंदन ,दूध ,घी ,शहद ,कमलगट्टा, धतूरा, बेल पत्र आदि का प्रसाद शिव को अर्पित करके पूजा की जाती है और रात को शिव जी के मंदिर में जागरण करके चार बार शिव जी की आरती का विधान किया जाता है दूसरे दिन प्रातः काल जो तेल ,खीर, और बेलपत्र ,का हवन करके ब्राह्मणों को भोजन कराकर व्रत पारण कहते हैं और भगवान शंकर को चढ़ाया गया नैवे‌द्द को खाना निश्चिद्ध है जो इस नैवेद्द को खा लेते हैं वह नरक को प्राप्त होते हैं इस कष्ट के निवारण के लिए शिव की मूर्ति के पास जिला ग्राम जी की मूर्ति रखते हैं यदि शिव जी की प्रतिमा के पास ही लग राम जी की मूर्ति होगी तो नवेद खाने पर कोई दोष नहीं लगता है।

   -: महाशिवरात्रि की कथा:-

आइए सुने महाशिवरात्रि की कथा यह गांव में एक शिकारी रहता था वह शिकार करके अपने परिवार का पालन करता था, एक बार उस पर साहूकार का ऋण हो गया जी ने चुकाने पर सेठ ने उसे शिव मंदिर में बंदी बना लिया उस दिन शिवरात्रि थी, वह शिव संबंधी बातें ध्यान पूर्वक देखता एवं सुनता रहा संध्या होने पर सेठ ने उसे अपने पास बुलाया, शिकारी ने अगले दिन ऋण चुकाने का वादा कर सेठ की कैद से छूट गया।

जंगल में एक तालाब के किनारे बेल वृक्ष पर शिकार करने के लिए मतदान बनाने लगा उस पेड़ के नीचे शिवलिंग का पेड़ के पत्ते मचान बनाते समय शिवलिंग पर गिरे इस प्रकार दिन भर भूखे रहने से शिकारी का व्रत भी हो गया वह शिवलिंग पर बेलपत्र भी चढ गया।

एक पहर व्यतीत होने पर एक गर्भिणी हिरणी तालाब पर पानी पीने निकली शिकारी ने उसे देख कर धनुष बाण उठा लिया वह हिरनी कतर स्वर में बोली, “मैं गर्भवती हूं।” मेरा प्रसव काल समीप ही है मैं बच्चे को जन्म देकर शीघ्र ही तुम्हारे सामने उपस्थित हो जाऊंगी शिकारी ने उसे छोड़ दिया कुछ देर बाद एक दूसरी हिरनी उधर से निकली शिकारी ने फिर धनुष बाण उठाता तो “हीरणी ने निवेदन “किया हे व्यग्र महोदय मैं थोड़ी देर पहले ऋतु से निवृत्त हुई हूं। “कामातूर विरहिणी हूंअ”। पने पति से मिलने पर सिर्फ तुम्हारे समक्ष प्रस्तुत हो जाऊंगी शिकारी ने उसे भी छोड़ दिया रात्रि के अंतिम पहर मैं एक म्रगी अपने बच्चों के साथ उधर से निकली शिकारी ने शिकार तू धनुष उठाया व्यक्ति छोड़ने ही वाला था। कि वह म्रगी बोली मैं इन बच्चों को इनके पिता के पास छोड आऊ तब तुम मुझे मार डालना आपकी बच्चों के नाम पर दया की भीख मांगती हूं शिकारी को उस पर भी दया आ गई और उसे भी छोड़ दिया।पौ फटने को हुई तो एक तन्दरूस्त आता दिखाई दिया शिकारी उसका शिकार करने के लिए उद्धत हो गया हिरण बोला” व्यग्र महोदय!! यदि तुमने इससे पहले 3 म्रगियो तथा उसके बच्चों को मार दिया होता तो मुझे भी मार देते ताकि मुझे उनको वियोग ना सहना पड़े मैं उन तीनों का पति हूं यदि तुमने उन्हें जीवनदान दिया हो दिया है। तो मुझ पर भी कुछ समय के लिए कृपा करें मैं उनसे मिलकर तुम्हारे सामने आत्मसमर्पण कर दूंगा।

हिरण की बात सुनकर रात की सारी घटनाएं उसके दिमाग में घूम रही थी। उसने हिरण को सारी बातें बता दी उपवास रात्रि जागरण तथा शिवलिंग का बेलपत्र चढ़ाने से उसमें भगवत भक्ति का जागरण हो गया उस ने हिरण को भी छोड़ दिया। भगवान शिव शंकर की अनुकम्पा से उसका हृदय मांगलिक भाव से भर गया और अपने अतीत के कर्मों को याद करके भी पश्चाताप की अग्नि में जलने लगा।

थोड़ी देर बाद हिरण सपरिवार शिकारी के सामने उपस्थित हो गया जंगली पशुओं की सत्यप्रियता सात्विकता एवं सामूहिक प्रेम भावनाओं को देखकर उसे बड़ी गलानी हुई उसके आंखों से आंसू आ गई है उस ने हिरण के परिवार को छोड़ दिया।

देवताइस घटना को देख रहे थे उन्होंने आकाश से उस पर पुष्प वर्षा की हो शिकारी परिवार सहित मोक्ष को प्राप्त हुआ बोलो हर हर महादेव।

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