प्लाज्मा थेरेपी क्या है:- इन परीक्षण में कोविड-19 की चपेट से बाहर आए मरीजों के रक्त से प्लाज्मा निकालकर बीमार रोगियों को ठीक करने के लिए दिया जाता है। उन लोगों में पहले से ही एंटीबॉडी मौजूद हैं जो वायरस को दूर भगाते हैं। उनका उपयोग दूसरे रोगी के लिए भी किया जा सकता है। शोधों से पता चलता है कि यह संक्रमित की प्रतिरक्षा प्रणाली को बढ़ावा देने में मदद कर सकता है।प्लाज्मा थेरेपी क्या है
आधुनिक समय में कोरोना एक विश्वव्यापी समस्या के रूप में उभर कर आया है ।अभी इस वायरस के प्रकोप से बचने के लिए कोई कारगर इलाज नहीं मिल पाया है ।यद्यपि दिन -प्रतिदिन नए-नए प्रयोग किए जा रहे हैं ,फिर भी क्षेत्र में कोई बड़ी सफलता हासिल नहीं हुई है ऐसी स्थिति में प्रभावित थेरेपी एक आशा की किरण मानी जा सकती है ,इस तकनीकी के अंतर्गत कोरोना के चपेट से उबर कर, पूर्ण रुप से स्वस्थ व्यक्ति का प्लाज्मा निकालकर, संक्रमित व्यक्ति को खुराक के रूप में दी जाएगी। यह प्लाज्मा संक्रमित व्यक्ति के लिए एक एंटीबायोटिक का काम करेगी।
दिल्ली में स्थित एक अस्पताल में कोरोना पीड़ित चार लोगों के ऊपर या परीक्षण सर्वप्रथम किया गया, उनमें से दो के ऊपर यह तकनीकी काफी सफल सिद्ध हुई। प्लाज्मा तकनीकी हालांकि काफी पुरानी तकनीकी में से एक है। इसका अनुप्रयोग दशकों से अन्य बीमारियों के समाधान के लिए होता आ रहा है, चिकित्सा पद्धति में अब तक कोई ऐसी दवा नहीं बन पाने की स्थिति में यह विकल्प रोगी के लिए जीवनदान साबित कर सकता है । विशेष बात यह है, कि अन्य व्यक्ति से प्लाज्मा को संक्रमित व्यक्ति में लगाया जाता है इससे प्लाज्मा दान देने वाले व्यक्ति में किसी भी प्रकार का साइड इफेक्ट नहीं होता है ,और ना ही उसे कमजोरी की शिकायत होती है। इसके अंतर्गत पूर्णता स्वस्थ हो चुके व्यक्ति का प्लाज्मा दान के रूप में लेकर ट्रांसफ्यूजन किया जाता है यह पद्धति एंटीबायोटिक की तरह काम करती है यह वायरस को शरीर के अंदर ही मात देने में काफी प्रभावी है ।शरीर में एंटीबायोटिक के जाते ही वायरस की पकड़ कमजोर होने लगती है और धीरे-धीरे मरीज के स्वस्थ होने लग जाता है ।
डब्ल्यूएचओ ने भी माना कि यह तकनीकी प्रभावी:- विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी इस तकनीकी को हरी झंडी दिखा दी है। यह तकनीकी बहुत ही महान एवं सार्थक है यह थेरेपी पहले रेबीज और डिप्थीरिया जैसे प्राणघाती बीमारियों के संक्रमण के खिलाफ रामबाण सिद्ध हो चुका है। पहली बार इस तकनीकी का अनुप्रयोग प्रथम विश्व युद्ध के संकट के कारण में 1918 में फैले स्पेनिश फ्लू के समय हुआ था, उसके बाद यह तकनीकी लगातार विभिन्न बीमारियों के निदान हेतु चलन में आ गई।
प्लाज्मा थेरेपी में लागत खर्च:- यद्यपि काफी महंगी और सीमित रूप से उपलब्ध है ,इसमें पूर्णतया स्वस्थ व्यक्ति यदि दान स्वरूप प्लाज्मा देने को तैयार हो तो उसकी मात्र दो खुराक ही मिल सकती है।
प्लाजमा थेरेपी पद्धति का प्रयोग किन कोविड-19 मरीजों को दिया जाता है- डॉक्टर की सलाह के बाद उन रोगियों के लिए जिनके पास उनके पास दिशानिर्देश होते है। मुख्य रूप से यह गंभीर रूप से पीड़ित एवं श्वसन संक्रमण होने की स्थिति में यह थेरेपी का अनु प्रयोग किया जाता है।
भारत में प्लाज्मा थेरेपी का अनुप्रयोग-भारत में दिन-प्रतिदिन रोगियों की संख्या में बढ़ोतरी देखते हुए नित्य रूप से तरह-तरह के अनुप्रयोग किए जा रहे हैं ,और कोरोनावायरस से बचने के लिए प्लाज्मा थेरेपी का परीक्षण सर्वप्रथम दिल्ली में किया गया ।इसमें चार कोरोना पीड़ित मरीजों पर यह प्रयोग किया गया ।इसमें दो की हालत बहुत ही सुधार देखने को मिले हैं ।दिल्ली के मुख्यमंत्री ने पूर्णता स्वस्थ हो चुके मरीजों से प्लाज्मा दान देने की मांग की। भारत के अन्य हिस्सों जैसे केरल एवं कर्नाटक कई राज्यों में इस थेरेपी का अनुप्रयोग बहुत ही जल्द प्रारंभ होने के आसार दिख रहे हैं ।भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद ने इस परीक्षण को करने में हामी भरी।
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